Bhayaharan Nath Dham Kshetriya Vikas Santhan

Pratapgarh Uttar Pradesh

February 25, 2012

भयहरणनाथ धाम में १२ महाकाल महोत्सव


कटरा गुलाब सिंह, प्रतापगढ़ : पौराणिक तीर्थस्थली भयहरणनाथ धाम में  12वें महाकाल महोत्सव में नामी कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रही। प्रयाग संगीत समिति की निदेशिका डा. सिम्मी वर्मा के निर्देशन में सप्तरंग कार्यक्रम की प्रस्तुति हुई। लिटिल चैम्प विजेता श्रेया सिंह, हर्षित श्रीवास्तव, आदित्य मिश्र, नामवर सिंह यादव की प्रस्तुतियां सराही गई। सोनल केसरवानी के नृत्य पर लोग झूम उठे। बांसुरी वादक रविशंकर ने बांसुरी की तान छेड़ी। तबलावादक रत्नेश द्विवेदी के तबले की थाप पर लोग नाचने को मजबूर हो गए। 20 फरवरी की रात हुए कवि सम्मेलन में विनय बागी, आकिल जौनपुरी, प्रशांत त्रिपाठी, स्मिता मालवीय, प्रताप भारतवंशी, सुशील शर्मा, अशोक अकेला, बैरागी, अनाड़ी की रचनाएं सराही गई। अध्यक्षता मुनेन्द्र नाथ श्रीवास्तव व संचालन संजय पुरुषार्थी ने किया। मेले में एसडीएम के निर्देश पर क्षेत्रीय विकास संस्थान द्वारा बनाई गई उप समिति सक्रिय रहीं।
 
 

 
 
 

2 comments:

शिव की महिमा अनंत है
उनके रूप, रंग और गुण अनन्य हैं
समस्त सृष्टि शिवमयहै
सृष्टि से पूर्व शिव - सृष्टि के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं

शिवोहम_शिवोहम_शिवोहम- पं. मुकुन्द देव शुक्ला

सृष्टि के आदिकाल से ही आदिवासी समाज व्यवस्था में शिवपूजा भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व में लोकप्रिय रही है. भारत सहित मिरुा, रोम, फ्रांस, जर्मनी, इन्डोचायना आदि विश्व के अनेक देशों तथा अनेक धर्मों के अनुयायियों के मध्य अपने-अपने स्तर पर शिवलिंग की पूजा-अर्चना के ऐतिहासिक अवशेष मिलते हैं. उत्तर अफ्रीका के 'मेफिस' और 'अशीरिश' नामक क्षेत्रों में नन्दी पर विराजमान तथा त्रिशूलधारी शिव की अनेक मूर्तियां हैं जिनकी वहां के लोग बेलपत्र से पूजा करते हैं और दूध से अभिषेक भी किया जाता है. तुर्किस्तान के बॉबीलोन नगर में विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग मौजूद है जिसकी ऊंचाई बारह सौ फुट बताई जाती है. रोम, यूनान और मिरुा में उसी फाल्गुन मास के वसन्तोत्सव पर लिंग पूजा का वार्षिक पर्व मनाया जाता था जिस मास में भारतवासी भी शिवरात्रि का पर्व मनाते हैं. पश्चिमी जगत में लिंग पूजा 'फैल्लस वरशिप' के रूप में प्रचलित है. प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार 'फैल्लस' की उत्पत्ति संस्कृत के 'फलेश' से हुई है क्योंकि शिव यज्ञ, पूजा आदि फल शीघ्र देने के कारण 'फलेश' कहलाते हैं. इन्डो चायना में संस्कृत के 92 ऐसे अभिलेख मिले हैं जिनका प्रारम्भ 'ऊँ नम: शिवाय' महामन्त्र से होता है.....ॐ नम: शिवाय पं. मुकुन्द देव शुक्ला

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