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Baba Bhayaharan Nath Shivaling |
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Baba Bhayaharan Nath Dham Temple,Pratapgarh U.P. |
लोकमान्यता है कि महाभारत काल में द्युत क्रीडा में पराजित होने के बाद पाण्डवों को जब १२ वर्षो के लिए वनवास में जाना पड़ा था उसी दौरान उनके द्वारा इसी स्थल पर बकासुर नामक राक्षस का वध करके शिवलिंग की स्थापना की गयी थी | कहा जाता है कि पाण्डवों ने अपने आत्मविश्वास को पुनर्जागृत करने के लिए इस शिवलिंग को स्थापित किया था इसी नाते इसे "भयहरणनाथ" कि संज्ञा से संबोधित किया गया | इस क्षेत्र में महाभारत काल के और कई पौराणिक स्थल तथा भग्नावशेष आज भी मौजूद है, जिसमे ऊँचडीह गांव का टीला तथा उसकी खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ, स्वरूपपुर गांव का सूर्य मन्दिर तथा कमासिन में कामाख्या देवी का मन्दिर प्रमुख है | इस सब के सम्बन्ध तरह - तरह की लोक श्रुतियाँ, लोक मान्यतायें प्रचलित हैं |
लोकमान्यता है कि महाभारत काल में द्युत क्रीडा में पराजित होने के बाद पाण्डवों को जब १२ वर्षो के लिए वनवास में जाना पड़ा था उसी दौरान उनके द्वारा इसी स्थल पर बकासुर नामक राक्षस का वध करके शिवलिंग की स्थापना की गयी थी | कहा जाता है कि पाण्डवों ने अपने आत्मविश्वास को पुनर्जागृत करने के लिए इस शिवलिंग को स्थापित किया था इसी नाते इसे "भयहरणनाथ" कि संज्ञा से संबोधित किया गया | इस क्षेत्र में महाभारत काल के और कई पौराणिक स्थल तथा भग्नावशेष आज भी मौजूद है, जिसमे ऊँचडीह गांव का टीला तथा उसकी खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ, स्वरूपपुर गांव का सूर्य मन्दिर तथा कमासिन में कामाख्या देवी का मन्दिर प्रमुख है | इस सब के सम्बन्ध तरह - तरह की लोक श्रुतियाँ, लोक मान्यतायें प्रचलित हैं |
इस प्राचीनतम धार्मिक स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन सैकडो वर्षो से विशाल मेला लगता आ रहा है, जिसमे लाखों लोग शामिल होते है | साथ ही प्रत्येक मंगलवार को हजारों की संख्या में क्षेत्रीय जन समुदाय शिवलिंग पर जल तथा पताका चढाने हेतु मन्दिर परिसर में एकत्रित होता है | महाशिवरात्रि के पर्व पर ही वर्ष २००१ से चार दिवसीय महाकाल महोत्सव का आयोजन भव्य तरीके से किया जाता है | जिसमे विविध धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है |देश विदेश के प्रवुद्ध व विद्वान लो़ग जहां धाम में आकर महोत्सव तथा अन्य आयोजनों में शामिल होते है | वहीं क्षेत्रीय जन महोत्सव में होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेकर आनन्द,देश विदेश के प्रवुद्ध व विद्वान लो़ग जहां धाम में आकर महोत्सव तथा अन्य आयोजनों में शामिल होते है | वहीं क्षेत्रीय जन महोत्सव में होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेकर आनन्द, ज्ञान व उत्साह की प्राप्ति करते है | प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर जी वर्ष २००३ में धाम में आकर यहां के शिवलिंग की पूजा अर्चना के बाद इसे अदभुत बताया |
धाम के विकास हेतु क्षेत्रीय लोगो के द्वारा भयहरणनाथ धाम क्षेत्रीय विकास संस्थान का गठन किया गया है | यह संस्थान धाम के विकास के साथ साथ आस पास के ५० गांवों के विकास के लिया प्रयासरत है | धाम पर स्थित पंचपरमेश्वर ग्रामीण सचल पुस्तकालय एवं सूचना केन्द्र, सचल कृषि संस्थान, भयहरणनाथ धाम इरादा ज्ञान पीठ, चरक बाटिका आदि का अनवरत संचालन हो रहा है वहीं सत्तत सामयिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं|
धाम पर पहुँचने के लिए मार्गः
उत्तर प्रदेश के जनपद प्रतापगढ़ के मुख्यालय से जेठवारा व मानधाता होते हुए कटरागुलाब सिंह भयहरणनाथ धाम सड़क मार्ग से आया जा सकता है | मुख्यालय से धाम की दूरी लगभग ३० किलोमीटर है |उत्तर प्रदेश के जनपद इलाहाबाद के मुख्यालय से सोराँव होते हुए कटरागुलाब सिंह भयहरणनाथ धाम सड़क मार्ग से आया जा सकता है | मुख्यालय से धाम की दूरी लगभग ३५ किलोमीटर है |
www.bhayaharannathdham.com
1 comments:
हे शंकर! आप सर्वज्ञ हैं, दयाके अपार समुद्र हैं तथा पूर्ण सामर्थ्यवान हैं, फिर भी न जाने क्यों मुझे आप इस दुखसागर से नहीं उबारते? माना कि मैं पापात्मा हूँ, किन्तु साथ ही दुखसे अत्यंत कातर भी हूँ! ऐसी दशा में यदि आप मुझे उबार लें तो इससे आपकी न्यायपरायणता में कौन-सी बाधा आती है? सभी नियमों में अपवाद भी होते हैं! इसलिये यदि मुझे आप अपवादरूप मानकर भी अपनी दयाकी भिक्षा दे दें तो इसमें क्या आपत्ति है? जैसे भी हो, इसबार तो दया करनी ही होगी !...ॐ नम: शिवाय पं. मुकुन्द देव शुक्ला
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